RABG LIVE NEWS DESK : कर्नाटक में भाजपा के लिए अभी भी तुरुप का इक्का हैं येदियुरप्पा. जी हां जैसा की हम जानते हैं कि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव मई महीने में होने वाले हैं. यहां भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी करने के लिए पूरे दम-खम से जुटी हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , केंन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह समेत भाजपा के सभी वरिष्ठ नेता कर्नाटक में एक के बाद एक रैली और जनसभाएं करके वोटरों को लुभाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं. लेकिन भाजपा यह जानती है कि कर्नाटक में भाजपा की बागडोर येदियुरप्पा के हाथों में ही है. हालांकि कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इस बार चुनान लड़ने से इनकार कर चुके हैं लेकिन भाजपा की हर छोटी से बड़ी रैली में वो नजर आ रहे हैं. इस बीच अमित शाह येदियुरप्पा के घर मेहमान बनकर भी पहुंचे और उनके बेटे से भी मुलाकात की. ऐसे में सवाल यह उठता है कि चुनाव लड़ने का ऐलान नहीं के बाद भी येदियुरप्पा क्यों कर्नाटक चुनाव में किसी तुरुप के इक्के से कम नहीं हैं? दरअसल इस सच्चाई से कोई इनकार नहीं कर सकता कि कर्नाटक में येदियुरप्पा भाजपा के सबसे कद्दावर नेता हैं और उनके पीछे लिंगायत समुदाय के मतदाता हैं. येदियुरप्पा ने हालांकि इस बार चुनाव में नहीं हिस्सा लेने का फैसला किया है और अपने बेटे विजयेंद्र के लिए टिकट मांगा है.
वहीं विजयेंद्र पिता येदियुरप्पा के निर्वाचन क्षेत्र शिकारीपुरा में बहुत सक्रिय हैं. जाहिर सी बात है कि भाजपा यह नहीं चाहेगी की पानी में रहकर मगर से बैर किया जाए. ऐसे में भाजपा के पास येदियुरप्पा की मांगों को मानने के अलावा कोई दूसरा चारा नजर नहीं आ रहा. सूत्रों के अनुसार बीजेपी समझ गई है कि दक्षिण में उसका प्रवेश द्वार कर्नाटक के माध्यम से ही संभव है. और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के बिना राज्य में जीत संभव नहीं है. ऐसे में विजयेंद्र को भाजपा टिकट देकर लिगांयत वोटरों को अपने पक्ष में करना चाहेगी. हालांकि कर्नाटक के सीएम बासवराज बोम्मई भी लिंगायत हैं, लेकिन येदियुरप्पा के मुकाबले जनता का जुड़ाव और विश्वास येदियुरप्पा पर अधिक है. वहीं येदियुरप्पा के बाद लिंगायत समुदाय का झुकाव उनके बेटे विजयेंद्र की तरफ अधिक है. बता दें कि कर्नाटक में 17 फीसदी लिंगायत आबादी है और 224 सीटों में से यह समुदाय लगभग 100 सीटों के भाग्य का फैसला करता है. वहीं येदियुरप्पा के कारण भाजपा को पिछले चुनाव में लिंगायत समुदाय के वोट मिलते रहे हैं और इस बार भी येदियुरप्पा के बेटे के जरिए भाजपा इन लिंगायत समाज का प्यार वोटों के तौर पर पाना चाहती है. इसके साथ ही अमित शाह खुद इस चुनाव में येदियुरप्पा को किसी भी हालत में नाराज नहीं करना चाहते हैं. वैसे भी भाजपा कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा नहीं चाहती है इसलिए बीजेपी की बहुमत वाली सरकार बनाने के लिए फोकस कर रही है. इस तरह येदियुरप्पा सक्रिय राजनीति में रहें या नहीं रहें पर वे अभी भी भाजपा के तुरुप का इक्का हैं.