वट सावित्री व्रत आज जाने ,इसकी महानता

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RABG LIVE DESK:  जेठ अमावस्या को बेहद ही खास दिन माना जाता है कहा जाता है कि इस दिस महिलाएं अपने पति के लंबी उम्र के लिए वट सावित्री का उपवास रख अपने पति के लंबी आयु के लिए कामना करती है. और पूरे विधि विधान के साथ बरगद के पेड़ की पूजा करेंगे एवं बरगद की वृक्ष को 108 बार परिक्रमा कर पति की लंबी आयोग की कामना करते हैं.

आपको बताते चलें कि हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन यह व्रत रखा जाता है इस दिन सभी सुहागन महिलाएं सज धज कर बरगद के वृक्ष के पास जाकर पूजा पाठ करती है एवं बट सावित्री का कथा सुनकर पूजा को समापन करती है!

इस दिन को इतना खास क्यो माना गया हैं जाने , 

 ऐसा कहा जाता है कि पौराणिक मान्यता के अनुसार अष्टपति नाम के धर्मात्मा राजा का जब राज चलता था तब उस वक्त उनकी कोई भी संतान नहीं थी संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने एक महा यज्ञ करवाया था जिसके शुभ फल से ठीक कुछ समय बाद ही उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई थी जिस कन्या का नाम सावित्री रखा गया था. और जब कन्या विवाह के योग्य हो गई तब उसकी विवाह राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान के साथ हुआ सत्यवान के पिता राजा होने के बावजूद भी उनका राजपाल सिंह या था जिसके बाद वो लोग बहुत ही मुश्किल से अपना जीवन व्यापन करते थे| उसी के साथ साथ आपको बताते चलें कि नारद मुनि ने सावित्री के पिता को बताया कि सत्यवान अल्पायु है और विवाह के 1 वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी जिसके बाद सावित्री के पिता ने उसे बहुत ही समझाने बुझाने का प्रयास किया परंतु सावित्री यह सब जाने के बावजूद भी अपने निर्णय पर अडिग रही आखिरकार सत्यवान और सावित्री का विवाह संपन्न हुआ जिसके बाद सावित्री सास ससुर और अपने पति की पूजा में दिन-रात लगी रही|

आखिरकार फिर वह एक दिन आ ही गया जिसका मुनि ने भविष्यवाणी की थी उस दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन में गई जब सत्यवान लकड़ियां काटने वन में गए हुए थे जैसे ही सत्यवान पेड़ पर चढ़ने लगा उसके सिर मैं काफी पीड़ा होने लगी और फिर वह सावित्री के गोद में अपने सर रखकर सो गया चलने लगा साथ ही सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे अपने पति को प्राण बचाने के लिए चलने लगी यमराज ने सावित्री से कहा कि यहीं तक तुम्हारी आखिरी मुलाकात थी अब तुम यहां से लौट जाओ इस पर सावित्री ने कहा कि जहां तक मेरे पति जाएंगे वहां तक मैं भी उनके साथ जाऊंगी और यही सनातन सत्य है और यमराज सावित्री की वाणी सुनकर प्रसन्न हुए और उनसे तीन वर मांगने को कहा सावित्री ने अपने वर में कहा कि मेरे कहां कि मेरे सास-ससुर अंधे हैं उनकी आंख वापस आ जाए तब यमराज ने तथास्तु कह दिया फिर सावित्री आगे बढ़ने लगी यमराज के पीछे ही चलती रही यमराज ने प्रसन्न होकर पुनः वर मांगने को कहा सावित्री ने वर मांगा मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए फिर यमराज ने उसे तथास्तु कह दिया वापस से उसके ससुर का सारा साम्राज्य उसने मिल गया लेकिन इसके बावजूद भी सावित्री यमराज के पीछे पीछे चलने लगी यमराज ने फिर उस से वर मांगने को कहा इस बार सावित्री ने कहा कि मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं कृपया कर आप मुझे यह वरदान दे तो वहीं यमराज सावित्री के पति भक्तों को देखते हुए तथास्तु कह दिया जिसके बाद सावित्री ने कहा कि मेरे पति के प्रांत वापस लेकर जा रहे हैं तो आप बताएं मुझे कि मुझे पुत्र प्राप्ति का वरदान कैसे पूर्ण होगा आखिरकार यमराज को सावित्री के इस पति परमेश्वर के प्रति इतने अच्छी भावना देख कर खुश हो गए और आखिरकार सत्यवान के प्राण यमराज को वापस करना ही पड़ा और फिर इन दोनों की जीवन में खुशहाली ही भर आई इसी दिन के बाद आज तक हर सुहागन महिलाएं अपने पति के लिए लंबी आयु का कामना करती हैं और वट सावित्री का पूजा करती है

साथ ही साथ आपको बता दें कि महिलाएं अपने पति के लिए कुछ कपड़े फल धागे और पूजा की गई सामग्री जैसे दीया सिंदूर रोड़ी कपूर इत्यादि सामग्री का प्रयोग करती हैं और बरगद के पेड़ पर धागा सूत्र को लेकर 108 बार परिक्रमा करती हैं

 

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