असद्दुदीन ओवैसी बिहार की राजनीति में एक नया नाम हैं. हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों से पहले बिहार में ओवैसी का जिक्र नहीं के बराबर होता था लेकिन विधानसभा चुनाव 2020 में AIMIM ने पांच सीटें जीतकर न सिर्फ बिहार में मजबूती से कदम रखा बल्कि अब NDA और महागठबंधन बिहार में ओवैसी की पार्टी को चुनावों में प्रतिद्वंदी मानने लगे है. बात विधानसभा उपचुनाव की करें तो इसमें भी ओवैसी की सक्रियता से महागठबंधन संशय में है. अगर गोपालगंज में महागठबंधन की हार होती है तो इसमें ओवैसी भी एक बड़ा फैक्टर साबित होंगे. हालांकि बिहार AIMIM अध्यक्ष अख्तरुल ईमान और AIMIM उम्मीदवार अब्दुल सलाम ने यह दावा किया है कि गोपालगंज में उनकी जीत होगी.
अख्तरुल ईमान ने तो यह भी कहा था कि गोपालगंज विधानसभा में अल्पसंख्यक और दलितों की बड़ी आबादी है और यहां के मतदाताओं ने महागठबंधन के उम्मीदवार को नकार दिया है, ऐसे में चुनावों में AIMIM की बड़ी जीत होगी तो दूसरी ओर AIMIM उम्मीदवार अब्दुल सलाम अल्पसंख्यकों में खास पकड़ रखते हैं. इससे यह साफ है कि गोपालगंज में ओवैसी की पार्टी कोई कमजोर दल नहीं है और पार्टी को यहां बड़ी उम्मीदें नजर आ रही है. वैसे इस चुनाव में AIMIM की जीत हो या न हो पर अगर ओवैसी की पार्टी की वजह से राजद की हार होती है तो भी यह AIMIM के लिए जीत के समान होगा क्योंकि इससे ओवैसी तेजस्वी यादव से पुराना हिसाब चुकता कर लेंगे. वैसे यह ओवैसी की ताकत का ही नतीजा है कि महागठबंधन के दल उन्हें भाजपा का एजेंट कहते हैं. कभी राजद तो कभी कांग्रेस ओवैसी को भाजपा का एजेंट कहते हुए नजर आती है. दरअसल ओवैसी ने जिस तरह से महागठबंधन के परंपरागत वोटरों में सेंध लगाया है उससे राजद और कांग्रेस हताश है. वैसे भी ओवैसी कह चुके हैं कि राजनीतिक पार्टियों ने मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है लेकिन अब वक्त बदल चुका है. अब मुस्लिम भी राजनीतिक पार्टियों के झांसे में आने के लिए तैयार नहीं हैं और इसका जीता जागता उदाहरण गोपालगंज विधानसभा उपचुनाव है. ऐसे में उपचुनावों का परिणाम चाहें जो भी हो पर इसमें ओवैसी की पार्टी अभी से ही विजेता नजर आ रही है.