बिहार में होने वाले विधानसभा उपचुनावों से चिराग पासवान की राजनीतिक ताकत का बजेगा डंका. जी हां 2020 के विधानसभा चुनाव के समय से ही अकेले चल रहे चिराग पासवान को भाजपा ने मना कर अपने उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार के लिए बुलाया. ऐसे में अगर मोकामा में भाजपा की जीत होती है या उसे सम्मानजनक वोट मिल जाता है तो बीजेपी के लिए वे राजनीतिक रूप से उपयोगी हो जायेंगे. गोपालगंज में भी इसी आधार पर उनके प्रभाव का आकलन होगा. वहीं भाजपा इस बात की भी परख करेगी कि पार्टी के संस्थापक दिवंगत रामविलास पासवान के समर्थक चिराग पासवान को कितना अपना मान रहे हैं. देखें तो यह इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि रामविलास पासवान की विरासत के दूसरे दावेदार रालोजपा के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस खुद को असली उत्तराधिकारी बता रहे हैं.
गौरतलब है कि स्वास्थ्य कारणों से पशुपति कुमार पारस ने चुनावी दौरा नहीं किया . हालांकि चिराग इससे पहले भी अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को काफी लाभ पहुंचा चुके हैं। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव 2020 में लोजपा के उम्मीदवार 145 सीटों पर लड़े, जिसमें एक पर जीत हुई. वहीं लोजपा को 5.66 प्रतिशत वोट मिला. इस चुनाव में चिराग के दो लक्ष्य थे-उनकी मदद से भाजपा की अगुआई में सरकार का गठन और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने से रोकना लेकिन उन्हें दोनों प्रत्यक्ष लक्ष्य हासिल नहीं हुआ. हालांकि बाद में पता चला कि जदयू को कमजोर करना ही उनका असली लक्ष्य था, जिसे उन्होंने हासिल कर लिया. उस वक़्त 71 विधायकों के साथ चुनाव मैदान में गया जदयू जब परिणाम के साथ लौटा तो उसके विधायकों की संख्या 41 रह गई थी. जदयू ने भी स्वीकार किया कि उसकी खराब उपलब्धि के लिए लोजपा जिम्मेवार है, जिसे भाजपा ने प्रायोजित किया था. जदयू और भाजपा के बीच मनमुटाव में चिराग फैक्टर बहुत कारगर रहा है. इस तरह चिराग पासवान जदयू को पहले भी झटका दे चुके हैं, ऐसे में अगर इस उपचुनाव में भी चिराग अपनी छाप छोड़ने में सक्षम हो जाते हैं जो कि नजर आ रहा है तो फिर NDA में न सिर्फ चिराग पासवान का कद बढ़ेगा बल्कि वे बिहार में भी रामविलास पासवान के असली राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जायेंगे.