हर देश का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को कोरोना की रोकथाम का टीका लगाने का है। कल यानी 16 दिसंबर को भारत को कोविड टीकाकरण अभियान के एक साल पूरे हो गए थे। इस खास मौके पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है
कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी कोविड-19 टीकाकरण दिशानिर्देशों में किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसका जबरन टीकाकरण कराने की बात नहीं की गई है।
दिव्यांगजनों को टीकाकरण प्रमाणपत्र दिखाने से छूट देने के मामले पर केंद्र ने न्यायालय से कहा कि उसने ऐसी कोई मानक संचालन प्रक्रिया जारी नहीं की है,
जो किसी मकसद के लिए टीकाकरण प्रमाणपत्र साथ रखने को अनिवार्य बनाती हो। केंद्र ने गैर सरकारी संगठन एवारा फाउंडेशन की एक याचिका के जवाब में दायर अपने हलफनामे में यह बात कही। हलफनामे में कहा गया है,
‘भारत सरकार तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देश संबंधित व्यक्ति की सहमति प्राप्त किए बिना जबरन टीकाकरण की बात नहीं कहते। केंद्र ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की मर्जी के बिना उसका टीकाकरण नहीं किया जा सकता। कोरोना टीकाकरण अभियान को एक साल हो चुके हैं।
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इसके तहत अभी तक 156.02 करोड़ डोज योग्य लोगों को दी जा चुकी है। अभी भी ये अभियान जारी है और 15-18 वर्ष के बच्चों को भी टीका लगाया जा रहा है।
उधर, देश में कोविड-19 टीकाकरण अभियान के एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर रविवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने स्वदेश निर्मित टीके ‘कोवैक्सीन’ पर आधारित डाक टिकट जारी किया. साथ ही कहा कि देश की 70 फीसदी वयस्क आबादी को टीके की दोनों खुराक जबकि 93 फीसदी को पहली खुराक दी जा चुकी है.
जिसमें मतदान वाले पांच राज्यों में तैनात मतदानकर्मी और 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों को शामिल किया गया है. कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन स्वरूप के प्रसार को रोकने की कवायद के तहत एहतियाती खुराक दी जा रही है.