नालन्दा-राजगीर में भी दिनों-दिन गर्मी बढ़ोतरी के कारण ठन्डे पानी के लिये मिट्टी के घड़े और सुराही खरीद रहे है |

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राजगीर में भी दिनों-दिन गर्मी में बढ़ोत्तरी हो रही है,लोग गर्मी से बचने के लिए मिट्टी के घड़े, सुराही आदि खरीद रहे हैं,

गर्मियों के आते ही देशी फ्रिज यानी मिट्टी के घड़े, सुराही आदि की डिमांड कुछ ज्यादा ही हो जाती है,राजगीर में भी दिनों-दिन गर्मी में बढ़ोत्तरी हो रही है,लोग गर्मी से बचने के लिए मिट्टी के घड़े, सुराही आदि खरीद रहे हैं,फ्रिज अथवा कूलर की बिक्री में बढ़ोत्तरी आए या ना आए, लेकिन मिट्टी से बने बर्तनों की बिक्री में अच्छी-खासी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है,बता दें कि राजगीर में में सूर्य की तपिश ने आम लोगों का जीना मुहाल कर रखा है,आलम यह है कि गर्मी के मौसम में लोग इससे बचने के लिए हर वक्त विकल्प की तलाश में रहते हैं,इन्हीं विकल्पों में से एक है मिट्टी का घड़ा, मिट्टी के घड़े का क्रेज यह कि सुविधा संपन्न व्यक्ति भी महंगे फ्रीज के घर में रहते हुए भी घड़े के पानी को ज्यादा तवज्जो लोग दे रहे हैं,वजह सिर्फ इतनी है कि घड़े का पानी का गर्मी में कोई साईड इफेक्ट नहीं होता,ऊपर से सोंधी खुशबू के बीच घड़े का एक ग्लास पानी गले को तरावट करने में कोई कसर नहीं छोड़ता,वहीं मिट्टी के बर्तन बेचने वाले अरविंद पंडित ने बताया कि गर्मी बढ़ने के साथ ही घड़ी, सुराही की बिक्री में तेजी आई है, शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग काफी संख्या में घड़े खरीदकर ले जा रहे हैं,उन्होंने बताया कि उसके यहां 150 से लेकर 250 रुपये तक के घड़ा एवं सुराही उपलब्ध है,वहीं बाजारों में मिट्टी की सोंधी खुशबू लिए देसी फ्रिज मिट्टी का घड़ा बिकने लगे हैं,गर्मी के दिनों में इसकी डिमांड बढ़ जाती है, पर कुम्हारों (प्रजापति) की पीड़ा ये है कि अब इस काम में उतनी कमाई नहीं रह गई है,महंगाई के दौर में सही से चार लोगों का परिवार चलाना मुश्किल है,पहले लोग मिट्टी के बर्तन में खाना भी पकाते थे, लेकिन समय परिवर्तन से लोगो के जीने का तरीका बदला,अब एल्युमिनियम, स्टील, फाइबर एवं प्लास्टिक के बर्तनों ने मिट्टी के बर्तन को खत्म कर दिया, ग्रामीण परिवेश के किचन से चार दशक पहले ही मिट्टी के बर्तन पूरी तरह गायब हो गए, राजगीर में प्रजापति परिवार की आबादी 2000 से अधीक है।अभी मौजूदा समय में मात्र सैंकडो परिवार ही इसी पुश्तैनी धंधे से जुड़े हैं,गर्मी के मौसम आते ही राजगीर- गिरियक रोड किनारे मिट्टी के बर्तन की दुकान प्रजापति समुदाय के लोग लगाते हैं,लेकिन धीरे-धीरे इस समुदाय से मिट्टी के बर्तन बनाने की कला विलुप्त होती जा रही है, कुछ परिवार के पुरुष घर पर मिट्टी के बर्तन बनाते हैं,वहीं विजेंद्र पंडित ने बतारा की हमारे पूर्वजों की आय का मुख्य स्रोत मिट्टी का बर्तन बनाकर बेचना था,पहले हर घर में घड़ा होता था,होटल में भी पानी रखने के लिए बड़ा घड़ा रखा जाता था,होटल मालिक दर्जनों बड़े-बड़े घड़े बनाने का ऑर्डर देते थे, लेकिन दो दशक पहले से होटल में घड़ा रखने का चलन खत्म हो गया,आज गर्मी में केवल गांव में ही मिट्टी के घड़े की मांग रह गई है,राजेंद्र पंडित ने बताया कि सिर्फ हिन्दू धर्म-संस्कृति में मिट्टी के बर्तन की जरूरत हमेशा रहेगी,शादी-विवाह, मृत्यु, और त्योहार में कुछ ही,मगर मिट्टी के बर्तन अनिवार्य होते हैं,इस कला के संरक्षण की जरूरत है,

संजीव कुमार बिट्टू प्रजापति ने बताया की सरकार को हमारे समाज की ओर ध्यान देना चाहिए, सरकार की घोषणा के बावजूद भी माटी कला बोर्ड का स्थापना नहीं हो पाया है।उन्होंने कहा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब जनसंवाद यात्रा में राजगीर पहुंचे थे तो हम लोगों ने उनको आवेदन दिया है।और मांग किया है कि जल्द से जल्द माटी कला बोर्ड का स्थापना हो ताकि हम लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ विशेष रूप से मिल सके। 

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